Durga Puja 2021 सोनपुर, विश्वनाथ सिंह । इस वर्ष का दुर्गा पूजा अपने आप में एक अनोखा रूप-रंग और आकर्षण के साथ मनाया जा रहा है। इसका कारण है भारत में अभी आजादी के 75वा वर्ष होने के कारण सर्वत्र अमृत महोत्सव मनाया जा रहा है। अमृत महोत्सव के साथ दुर्गा पूजा का आयोजन सोने में सुहागा का काम कर रहा है। गुलामी की जंजीरों से देश की मुक्ति दिलाने में मां दुर्गा की अहम अदृश्य भूमिका रही है। देश भक्तों ने मां दुर्गा की आशीर्वाद से विदेशियों को यहां से खदेर भगाने में सफल रहे है।
Durga Puja 2021 : प्रत्येक वर्ष अश्विन मास में शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से प्रारंभ होकर नौ दिन तक चलने वाला नवरात्रि शारदीय नवरात्रि कही जाती है। शारदीय नवरात्रि में दिन छोटे होने लगते है और रात्रि बड़ी। ऋतुओं के परिवर्तन काल का असर मानव जीवन पर नही पड़े इसलिए साधना के बहाने ऋषि-मुनियों ने इन नौ दिनों में उपवास का विधान किया था। नवरात्रि का समापन विजयदशमी के साथ होता है।
मां दुर्गा के सभी नौ रूपों का अलग-अलग महत्व है।
शैलपुत्री – मां दुर्गा का पहला स्वरूप शैलपुत्री का है। पर्वतराज हिमालय के यहां पुत्री के रूप में उत्पन्न होने के कारण इनको शैलपुत्री कहा गया। यह वृषभ पर आरूप दाहिने हाथ में त्रिशूल, बाएं हाथ में पुष्प कमल धारण किए हुए है। यह नौ दुर्गाओं में प्रथम दुर्गा है। नवरात्रि पूजन में पहले दिन इन्ही की पूजा होता है।
ब्रम्हचारिणी – मां दुर्गा की नौ शक्तियों में से दूसरा स्वरूप ब्रम्हचारिणी का है। यहां ब्रह्मा शब्द का अर्थ तपस्या से है। ब्रह्मचारिणी का अर्थ हुआ तप की धारिणी यानि तप का आचरण करने वाली। इनके बाएं हाथ में कमंडल और दाएं हाथ में जप की माला रहती है। मां दुर्गा का यह स्वरूप भक्तों और सिद्धों का अनंत फल प्रदान करने वाला है। ब्रह्मचारिणी देवी का स्वरूप ज्योतिर्मय तथा अत्यंत भव्य है।
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चंद्रघंटा – मां दुर्गा की तीसरी शक्ति का नाम चंद्रघंटा है। नवरात्र उपासना में तीसरे दिन इन्ही के विग्रह का पूजन व आराधना को जाती है। इनका स्वरूप अत्यंत शांतिदायक और कल्याणकारी है। इनके मस्तक में घंटे के आकार का अर्धचंद्र है। इसी कारण इस देवी का नाम चंद्रघंटा पड़ा। इनके शरीर का रंग स्वर्ण के समान चमकीला है। इनका वाहन सिंह है।
कुष्मांडा – माता दुर्गा के चौथे स्वरूप का नाम कुष्मांडा है। अपनी मंद हल्की हंसी द्वारा ब्रम्हांड को उत्पन्न करने के कारण इनका नाम कुष्मांडा पड़ा। नवरात्रों में चौथे दिन इनके स्वरूप की उपासना की जाती है। इनकी उपासना मनुष्य को समृद्धि और उन्नति की ओर ले जाती है।
स्कंदमाता – मां दुर्गा के पांचवें स्वरूप को स्कंदमाता कहा जाता है। कार्तिकेय की माता होने के कारण मां दुर्गा के इस पांचवे स्वरूप को स्कंदमाता के नाम से जाना जाता है। इनका वर्ण शुभ्र है। ये कमल के आसन पर विराजमान है। इनका वाहन सिंह है।
कात्यायनी – कात्यायनी मां दुर्गा के छठे स्वरूप को कात्यायनी कहते हैं। कात्यायनी महर्षि कात्यायन की कठिन तपस्या से प्रसन्न होकर उनकी इच्छानुसार उनके यहां पुत्री के रूप में पैदा हुई थी। महर्षी कात्यायन ने सर्वप्रथम उनकी पूजा की थी। दुर्गा पूजा के छठे दिन उनके छठे स्वरूप की पूजा की जाती है।कालरात्रि – मां दुर्गा के सातवें स्वरूप को कालरात्रि कहा जाता है। उनका स्वरूप देखने में अत्यंत भयानक है लेकिन ये सदैव शुभ फल देने वाली हैं। दुर्गा पूजा के सप्तम दिन मां कालरात्रि की पूजा का विधान है। ये दुष्टों का विनाश और ग्रह बाधाओं को दूर करने वाली हैं। हरिहर क्षेत्र सोनपुर में नारायणी के तट पर अवस्थित दक्षिणायन काली की दर्शनार्थ नवमी-दशमी के दिन अपार भीड़ उमड़ पड़ती है।
महागौरी – मां दुर्गा के आठवें स्वरूप का नाम महागौरी है। उनके उपासना से सारे क्लेश धूल जातें हैं। उनकी शक्ति अमोघ और फलदायिनी है।
सिद्धीदात्री – मां दुर्गा के नौवें स्वरूप को सिद्धिदात्री कहते हैं। नौ दुर्गाओं में मां सिद्धिदात्री अंतिम हैं। उनकी उपासना के बाद भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं। कथा,पूजा हेतु गंगा जल,रोली,पान, सुपारी, धूप, बत्ती,घी का दीपक,फल, फूल की माला, विप्लव पत्र, अरवा चावल,केले का पौधा, चंदन, नारियल,आम के पत्ते, हल्दी की गांठ, सुगंधित तेल, कपूर, नैवेद्य, पंचामृत, दूध, घी, मधू, चीनी, गोबर, कुमारी पूजन के लिए वस्त्र, आभूषण तथा श्रृंगार सामग्री का व्यवस्था करना जरूरी होता है।