डाक्टर की सलाह- 1.गर्भवती महिलाओं को पहले तीन महीने में विशेष सावधान रहने की जरूरत। 2. तेल मसाला कम खाएं या न खाएं। पानी खूब पीना चाहिए। यात्रा से बिलकुल बचें। और एकअल्ट्रासाउंड कराएं साथ में फॉलिक एसिड लगातार लें।
आम तौर पर यह धारणा है कि प्रेगनेंसी कोई बीमारी नहीं, यह तो एक आशीर्वाद हैः डा. श्वेता के तीन महीने बाद तक ज्यादा चिंता की कोई बात नहीं है। लेकिन बिहार के प्रसिद्ध ऑब्सट्रिसियन, गायनोकोलोजिस्ट और लेप्रोस्कोपिक सर्जन डा. श्वेता इन धारणाओं को खारिज करती हैं। Doctorsforall youtube chanel से बातचीत करते हुए वो कहती हैं कि प्रेगनेंसी के नौ माह बहुत ही संवेदनशील होते हैं और पूरे नौ माह सावधान रहने की जरूरत होती है। लेकिन प्रेगनेंसी की पहली तीमाही तो और भी महत्वपूर्ण होते हैं । इस अवस्था में कोई भी लापरवाही खतरनाक हो सकती है।
आलोक मेडिकल सेंटर की ऑब्सट्रिसियन डा. श्वेता कहती हैं कि सबसे पहले यह समझना जरूरी है कि प्रेगनेंसी कोई बीमारी नहीं है। इसे बीमारी की तरह लेने की जरूरत नहीं।सदियों पहले से होती रही हैं और आगे भी होती रहेंगी। औरतों के लिए यह एक बड़ा आशीर्वाद है। हां लेकिन इसको लेकर कुछ सावधानियां जरूरी हैं जिसका पालन सभी गर्भवती महिलाओं को करना चाहिए।
डा. श्वेता कहती हैं गर्भावस्था के पहले तिमाही में उल्टी और चक्कर की समस्या ज्यादा होती है। इसलिए ऐसे समय खानपान पर विशेष ध्यान देने की जरूरत होती है। गर्मी का मौसम है तो पानी खूब पीना चाहिए, अपने आपको हाईड्रेटेड रखना चाहिए। तेल मसाला का सेवन कम से कम करना चाहिए या नहीं करना चाहिए। क्योंकि ऐसे समय में तेल मसाला बहुत पचता नहीं है या पचने में दिक्कत होती है।
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डा. कहती हैं कि पहले तिमाही में यात्रा से बचने की जरूरत है। कारण कि यही वह समय है जब भ्रूण बन रहा होता है। इसलिए यात्रा को नजरअंदाज किया जाना चाहिए। फिर भी अगर यात्रा बहुुत ही जरूरी हो जाता है तो ट्रेन से ही किया जाना चाहिए। भागदौड़ के काम से बचना चाहिए। डा. श्वेता कहती हैं कि यह सभी कंसिव करने वाली महिलाओं क लिए जरूरी है। चाहे नॉर्मल कंसिव हो या आईवीएफ हो या फिर किसी भी तरह की फर्टिलिटी ट्रीटमेंट के बाद कंसिव किया गया हो. ये सावधानियां सभी के लिए जरूरी है।
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इसके अतिरिक्त वो सलाह देती हैं कि पहली तिमाही में फॉलिक एसिड तो पहली तिमाही जरूर ही लेना चाहिए। इसी समय बच्चा बन रहा होता है। और फॉलिक एसिड इसमें महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। इसीके साथ डा. श्वेता कहती हैं कि पहले तीन महीने में एक अल्ट्रासाउंड भी करा लेना चाहिए। इससे ये पता चल जाता है कि बच्चा सही जगह इंप्लांट हुुआ है कि नहीं। अगर नहीं हुआ है तो यह जच्चाऔर बच्चा दोनों के लिए जानलेवा हो सकता है।